लोककथा : कउंवा करिया काबर होईस

एक बखत के बात आय। एक झन मुनि के कुटिया म एकठन कौआ हे तऊन सुग्घर मुनि के तीर म रहिके जूठा-काठा खावत अपन जिनगी ल पहावत रहय। कहे जाथे कि ओ बेरा म कौआ के तन हा सादा रिहिस हे। एक दिन मुनि हा कौआ ल कहिथे, ‘हे कौआ मय तोर बर एक ठन बुता जोंगे हंव करबे का?’
कौआ कहिथे, ‘का बुता आय मुनिजी।’ मुनि कथे, ‘ये एक अइसे बुता आय जेमा पूरा संसार के हित होही।’ संसार के हित ल सुनिस त कौआ खुशी के मारे गदगद हो जाथे अऊ कथे हे ‘मुनिजी मोर त भाग जाग जाही, मुनिजी जेमा संसार के हित होय अइसन बुता ल कोन नई करना चाही। बताववं मुनि जी काय बुता ये तेला।’ मुनि कहिथे, ‘कौआ ये बुता ल बताय के पहिली तय मोला एक वचन दे कि मैं जइसन कइहूं तइसन करबे कहिके तभे मै तोला बुता ल बताहूं।’
कौआ ह मुुनि ल वचन देथे त मुनि ह कहिथे कि तय मोर बताय रद्दा म अमरित के खोज करे बर जाबे अऊ तोला जब अमरित मिल जाही त अमरित ल पीबे झन ओला देख के कते कर हावय तेला मोला बताबे। त मैं वो अमरित ल लान के तोला तोरो हिस्सा देहूं अऊ मैं वो अमरित ल बेरा परे म जऊन ल जरूरत पड़त जाही त मैं देवत जाहूं। जेकर ले संसार मा सबो मनखे सुख से रइही। फेर कहूं तैं ओला पीबे त मैं तोला श्राप दुहूं जेमा तैं अऊ तोर पूरा कुल ल श्राप भोगे ल परही।’ कौआ हे तऊन मुनि के बताये रद्दा म अमरित खोजे बर चल दिस।




कौआ ल अमरित खोजत-खोजत महिना भर बीते ल लगगे, फेर कौआ के मेहनत अऊ सच्चा लगन म ओला एक जगा अमरित ले भरे लोटा दिखिस। कौआ अमरित ले भरे लोटा तिर गिस अऊ अमरित कईसे रहिथे कहिके चिखे ल लगिस त ओला मुनि के कहे गोठ सुरता आ जाथे अऊ अमरित ल पिये बिना ही फेर मुनि ल बताय बर लहुटगे। थोरेच दुरिया गे रिहिस कि कौआ के मन म लालच समा जाथे अऊ गुनथे कि ये अमरित ल कहूं मैं पी लेवत हंव त वइसने ही मैं अमर हो जाहंू मोला मुनि के श्राप ले काय होने वाला हे अऊ मैं कहूं मुनि ल अमरित के जगा ल बताय बर जावत हंव अऊ ऊंहा ले आवत ले कोनो दूसर हा ये अमरित ल पी दिही त न मोरो होही न मुनि के होही। फेर येखरों का भरोसा हे कि मैं मुनि ल अमरित के जगा ल बताहूं अऊ मुनि ह अमरित ल पा के मोला मोर हिस्सा दिही घला कि नई दिही। तेकर ले अच्छा मैं पहिली जाके अमरित ल पी लेथंव अऊ फेर दूसरईया पारी ओ लोटा म अमरित भरा जाही त मुनि ला जाके बता दूहूं कहिके अमरित ले भरे लोटा तीर गिस अऊ सबो अमरित ल पी दिस अऊ उही कर एकठन डूमर के रूख म अपन खोंधरा बना के लोटा म फेर अमरित भरे के अगोरा करे लगिस। कौआ रोज बिहिनिया अऊ संझाती के बेरा अमरित के लोटा ल जाके देखय त जुच्छा के जुच्छा रहय अइसने करत कौआ ल बछर भर बीते ल लगिस त अमरित फेर लोटा म भर जाही तेकर आस ह टूटगे। त जम्मो बात ल बताय बर कौआ मुनि तीर गिस अऊ सबो बात ल मुनि ल बताईस। मुनि कौआं के गोठ ल सुन के बड़ गुस्सा होईस अऊ कौआं ल श्राप दिस कि आज ले सब्बो पक्षी म कौआ जाति हे तऊन नीच पक्षी के रूप म कहाहू, जेन मनखे के घर म जाहू ओ घर के मन तुमन ल गारी दे के खेदारही अऊ ते ह अमृत ल पीये हस तेन पाय के आज ले कोनो भी कौआं हा अपन उमर भर जिनगी ल पहा के सुख ले मरना ल नई पावय अऊ कोनो भी कौआ न बुड़ हत काल ला पावव न ही कोनो किसम के बीमारी म मरव। तुंहर मौत हे तऊन अचानक काल मा दुख भरे होही अऊ आज तय जऊन करम करके अपन जाति ल कलंकित करेस अऊ संसार ल अमरित बर अंधियारी कर देस तेन पाय के इही अंधियारी के चिन्हारी करिया रंग ह तोर अऊ तोर पूरा कुल के कौआ तन अऊ मन ले करिया रही कहिके मुनि हे तऊन अपन कमंडल के पानी ल कौआ ऊपर छिच दिस।




मुनि के श्राप ले सब्बो कौआ ह तुरते करिया तन ल पालिस। कौआ ल अपना करनी के अबड़ पछतावा होईस त मुनि के गोड़ म गिर के रोवत-रोवत कथे, ‘हे मुनि मोर करनी के सजा मोर सब्बो कौआ जाति ल झन दे। मोर ऊपर दया कर मुनिवर। मैं मोर जाति ल कलंकित कर देवं तेकर श्राप तो सब्बो झन ल भुगतना परही फेर हमर ये श्राप ले मुक्ति के कोनो रद्दा बता दे।
कौआ ल अपन करनी म घेरी-बेरी पछतावा करत देख के मुनि ल दया आ जाथे अऊ कथे – ‘हे कौआ भादो (भाद्रपद) के महिना म पंद्रह दिन बर तुमन मनखे के घर म पितर के रूप म मान-गऊन ल पाहू अऊ पितर देव ल दिये भात-साग, रोटी-पीठा ल खाहू तभे ये कौआ के तन ले मुक्ति ल पाहू अऊ सोज्झे बैकुण्ठधाम जाहू।
तेही पाय के कहे जाथे कि जिनगी म कोनो किसम के लालच नई करना चाही जोन किसम ले कौआ के चिटिक भर के लालच पूरा कुल ल कलंकित कर दिस।
भोलाराम साहू ‘दाऊ’
ग्राम व पोस्ट – हसदा 2, थाना-अभनपुर




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